POEM

महताब आएगा
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निकलकर पत्थरों से जब नदी में आब आएगा।
नहाने के लिए आकाश से महताब आएगा।

घनेरी रात में जब नदी में तारे नहाएंगे,
उदासे घाट को भी चांदनी का खाब आएगा।

नदी जैसे बुझाती है सभी का प्यास वैसे ही,
करें गर हम सभी कोशिश तो इन्कलाब आएगा।

लिए कर में किताबें नदी के तट पर पुनः बैठो,
तिरे दर पे खुदी चल ज्ञान का सैलाब आएगा।

मिलेगा जहाँ चिन्तन शून्य से ब्रह्मांड पढ़ने का,
नदी के किसी तट पर मोड़ वह नायाब आएगा।

थिरककर चूम लेगा चरण माँ का समझकर गंगा,
युवा के हाथ में जब मन मुताबिक जाब आएगा।

डरो मत तेज लहरों से चलाओ हाथ तेजी से,
बचाने के लिए नौका खुदी अहबाब आएगा।

हमें उम्मीद है तपती जमीं फिर से हरी होगी,
लिए बादल खुदी हरियाली का असबाब आएगा।

सभी कोशिश करें तो बाग, पोखर, ताल, झीलों में,
उमड़कर हंस आएगा, थिरक सुरखाब आएगा।

– धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव संरक्षक मानव सेवा समिति

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