POEM

सिर्फ हिन्दुस्तान बसता है
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जहाँ तक यूपी या बिहार
का इन्सान बसता है।
पता कर लो वहाँ तक मुल्क का निर्मान बसता है।

हमें भैया, बिहारी, देशवाली
बोलने वालों,
हमारी उंगुलियों में सिर्फ हिन्दुस्तान बसता है।

हमारी गंगा, यमुना और
कोसी के दयारों में,
गरीबी है मगर बन देवता
मेहमान बसता है।

जिसे लखकर अहिंसा रो पड़ी
थी सन बयालिस में,
यहीं पर उन शहीदों का अमर
बलिदान बसता है।

उड़ाया जिसने अपने हौसले से टैंक को क्षण में,
यहीं पर परम वीर हमीद का तूफान बसता है।

ये काशी रामनगर घर बहादुर शास्त्री का है,
इसी माटी में पाकिस्तान का अपमान बसता है।

ये चम्पारण, मुजफ़्फ़रपुर, बलिया, मऊ, देवरिया,
विनय सत्याग्रह का इस धरा में मान बसता है।

जिसे बतला के भारतरत्न इतराता सकल भारत,
यहीं राजेन बाबू का जिला सीवान बसता है।

हमारी ही सदारत में वो उतरा इस धरा पर है,
वो पावन ग्रन्थ जिसमें स्वयं संविधान बसता है।

ये आरा है यहाँ जगदीशपुर में आ कभी सुन लो,
यहाँ बाबू कुवँर सिंह वीर का अभिमान बसता है।

यहीं काशी, यहीं मथुरा, यहीं पावन अयोध्या है,
यहाँ के पत्थरों में आके खुद भगवान बसता है।

ये आज़मगढ़, इलाहाबाद, गोरखपुर बताता है,
मेरी माटी में संघर्ष का सुर तान बसता है।

कभी झांसी, कभी बिठूर के लोगों से भी पूछो,
यहाँ हर ईंट में आजादी का उन्वान बसता है।

लिखेगा जो इबारत कल को एक समृद्ध भारत की,
इसी खित्ते में वो मज़दूर और किसान बसता है।

इधर देखो उधर देखो जिधर चाहो उधर देखो,
मशक्कत की कहानी में यहाँ ईमान बसता है।

कसम नागार्जुन, कैफ़ी, फणीश्वर, अदम, धूमिल की,
यहाँ कमजोर सिर पर पांव में सुल्तान बसता है।

हिकारत की नज़र से हमें अक्सर देखने वालों,
हमारी सोच में सबके लिए कल्यान बसता है।

अगर चाहो सकल समृद्धि तो सम्मान दो हमको,
हमारे हाथ में इस जगत का उत्थान बसता है।

ये कस्बा दिलों का दिलदारनगर नाम है इसका,
यहीं निरहु का पूरा में हमारा प्रान बसता है।

– धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव संरक्षक मानव सेवा समिति सिखड़ी गाजीपुर U.P.

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