बौद्धिक दिव्यांग बालकों की आवश्यक गतिविधिया

बौद्धिक दिव्यांग बालकों की बुद्धि लब्धि सामान्य बालकों से कम होती है तथा हम यह भी जानते हैं कि उनमें सामाजिक कुशलता का भी अभाव होता है इन कमियों के कारण मानसिक मंद बालक को अपने जीवन में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है बौद्धिक दिव्यांग बच्चे अपनी प्रतिदिन की दैनिक कौशल भी करने में कठिनाई महसूस करते हैं या नहीं कर पाते हैं प्रश्न यह बनता है कि सबसे पहले हमें मानसिक मंदता या बौद्धिक दिव्यांगता का पहचान करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि जब तक हम बच्चे के बौद्धिक स्तर को नहीं जानते हैं तब तक उसके बारे में हम कोई भी क्रियाकलाप या पाठ योजना उनके बौद्धिक स्तर के अनुसार नहीं बना पाते हैं बौद्धिक दिव्यांगता एक मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक समस्या है बौद्धिक दिव्यांग बालकों को उनकी विशेषताओं के द्वारा पहचाना जा सकता है परंतु उसकी बौद्धिक दिव्यांगता की तीव्रता के स्तर को नहीं जाना जा सकता बौद्धिक दिव्यांगता की तीव्रता का स्तर जाने बिना उनके लिए उपचार एवं शिक्षा की व्यवस्था नहीं की जा सकती अतः इन बालकों में बौद्धिक दिव्यांगता की मात्रा या स्तर को मापना अत्यंत आवश्यक है मैं मनोवैज्ञानिकों के द्वारा अनेक बुद्धि परीक्षण उपलब्ध है जैसे स्टैनफोर्ड बिने परीक्षण संशोधित रेसलर बुद्धि परीक्षण इत्यादि है परंतु सुविधा एवं परिणामों की शुद्धता के आधार पर व्यक्तिक या व्यक्तिगत परीक्षण बौद्धिक दिव्यांग बालकों के लिए अधिक उपयुक्त है इन परीक्षणों के आधार पर बौद्धिक दिव्यांगता को अमेरिकन एसोसिएशन आफ मेंटल डिफिशिएंसी के द्वारा इनको वर्गीकृत किया गया है बॉर्डर लाइन जिन की बुद्धि लब्धि 70 -84 है माइल्ड जिन की बुद्धि लब्धि 50 -69 है मॉडरेट जिन की बुद्धि लब्धि 35 -5049है सीवियर जिन की बुद्धि लब्धि 20-34है प्रोफाउंड जिन की बुद्धि लब्धि 20 से नीचे है बौद्धिक दिव्यांगता को बुद्धि लब्धि के आधार पर पांच प्रकार से वर्गीकृत किया गया है इनकी बुद्धि लब्धि के अनुसार बच्चों का समूह बनाकर उनका विभिन्न आकलन जांच सूची द्वारा अर्थात एसेसमेंट टूल्स द्वारा निम्नलिखित क्षेत्र में जैसे व्यक्तिगत क्षेत्र ,सामाजिक क्षेत्र ,शैक्षणिक क्षेत्र, व्यवसायिक क्षेत्र ,मनोरंजनतमक क्षेत्र इत्यादि मैं आकलन करके उनके लिए क्रियाकलाप और पाठ योजना का निर्माण किया जाता है उनके लिए जो आवश्यक कौशल होते हैं सबसे पहले उनका चयन किया जाता है कौशलों का चयन करने के बाद कौशलों को छोटे-छोटे चरणों में बांटा जाता है अर्थात कार्य विश्लेषण किया जाता है और बच्चों को सीखने के लिए विभिन्न शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है जो बच्चों के लिए आवश्यक हो जैसे मॉडलिंग ,सहायता शिपिंग ,चीनिंग ,पुनर्बलन इत्यादि एवं सीखने के विभिन्न सिद्धांत जैसे सरल से जटिल, ज्ञात से अज्ञात ,संपूर्ण से अंश इत्यादि एवं विभिन्न शिक्षण अधिगम सामग्री द्वारा बौद्धिक दिव्यांग बच्चों को कौशल को सिखाकर आत्मनिर्भर बनाया जाता है जिससे वह समाज के मुख्यधारा में एक सामान्य बच्चों एवं व्यक्तियों की तरह अपना जीवन यापन कर सकें और समाज के मुख्यधारा से जुड़ सकें!

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